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Thursday, 26 January 2012

नदी, झील, झरनों की झाँकी मनमोहक है by Rashi jain

नदी, झील, झरनों की झाँकी मनमोहक है,
सुमनों से सजी घाटी-घाटी मेरे देश की।
सुरसरिता-सी सौम्य संस्कृति की सुवास,
विश्व भर में गई है बाँटी मेरे देश की।

पूरी धऱती को एक परिवार मानने की,
पावन प्रणम्य परिपाटी मेरे देश की।
शत-शत बार बंदनीय अभिनंदनीय,
चंदन से कम नहीं माटी मेरे देश की।।

कान्हा की कला पे रीझकर भक्ति भावना
के, छंद रचते हैं रसखान मेरे देश में।
तुलसी के साथ में रहीम से मुसलमान,
है निभाते कविता की आन मेरे देश में।

बिसमिल और अशफाक से उदाहरण,
साथ-साथ होते कुरबान मेरे देश में।
जब भी ज़रूरत पड़ी है तब-तब हुए,
एक हिंदू व मुसलमान मेरे देश में।

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