Pages - Menu

Wednesday, 28 March 2012

आया दिन बहार का, मौसम है ये प्यार का..

आया दिन बहार का, मौसम है ये प्यार का
प्यारे से ब्रह्माण्ड का, सजाने और सिंगर का

आज धरती ने सिंगार किया, सूरज ने उससे प्यार किया
अपनी लालिमा की छाया में, उसने प्यार का इजहार किया

धरती भी थोड़ी सरमायी, थोड़ी सी वो भी घबरायी
समझ न पाई क्या हुआ, सूरज को उससे प्यार हुआ

घबरायी धरती जब बैठी कैसे वो ये बात कहती
सूरज की इन बातो को वो कैसे चाँद के साथ करती

सूरज की इन बातो को चाँद से उसने न बताया
अगले ही दिन सूरज को उसने प्यार से समझाया

सदियों से मैं चाँद की हू वही है मेरा जीवन साया
धरती की ये बात सुनके सूरज को बहुत गुस्सा आया

धरती को सबक सिखाने का उसने एक खेल बनाया
संग अपने उसने बादल को भी मिलाया

कहा बादलो से तुम सब मेरी बस ये बात मानों
कहो चाँद से तुम भी धरती का एक राज जानो
सुन उनकी बाते चाँद को भी गुस्सा आया
सुनी न बात धरती की अपना एक फरमान सुनाया

तेरी इन बातो से हमको अब रुसवाई है
अब तो हम ये जान गए तू अपनी नहीं परायी है

सूरज ने उसको तड़पाया क्रोध से अपने उसे जलाया
गर्मी के उस मौसम में लाख सितम उसने ढाया

गम को सहती बात ये कहती बादल तुमने क्या किया
न जाने क्यों तुमने मुझको मेरे प्रीतम से जुदा किया

बादल को जब ज्ञान आया इसपे वो भी पछताया
उसने सारी बाते जाके चाँद के आगे बतलाया

उसकी शोभा बढ़ाऊंगा पहले जैसा बनाऊंगा
तुम दोनों की जोड़ी को मैं ही अब मिलवाऊंगा

क्या करू क्या करू यही सोच कर सोया
क्या करेगा वो ये सोच कर बहुत रोया

वर्षा की इन बूंदों से धरती ने अपना सिंगर पाया
धरती की इस सिंगर से बहार का मौसम फिर आया

चाँद ने धरती से माफ़ी मांगी चाँद ने अपनी गलती मानी
रहते है साथ मिलके यही है अलबेली धरती की कहानी....


submitted by
ashish

1 comment:

  1. This is nice and sweet poem. Like it thanks for posting it, keep it on friend...

    Visit for Free SMS,

    ReplyDelete